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वाराणसी के लक्सा क्षेत्र में श्री खाटू श्याम जी का मंदिर स्थित है जो की तक़रीबन 30 साल पुराना है जो कि श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के बाद वाराणसी का दूसरा स्वर्ण जड़ित मंदिर है I श्री खाटू श्याम के दरबार से कोई भी खाली हाथ नहीं जाता पुराणों के अनुसार श्री कृष्ण ने कहा है कि “ हे बर्बरीक संसार कहता है कि मैंने किसी प्राणी के भाग्य में यदि दुःख लिखा हो उसे कोई भी नहीं बदल सकता, परन्तु जो प्राणी तुम्हारे दरबार में सर रख देगा उसके भाग्य को भी बदलने का अधिकार तुम्हे प्राप्त है I जन्म कथा धर्म ग्रंथो के अनुसार श्री खाटू श्याम जिनका वास्तविक नाम बर्बरीक है वे पांडू पुत्र भीम के पौत्र , घटोत्कक्ष एवं कामकंटका के पुत्र हैI इनका प्राचीन मंदिर राजस्थान के खाटू जिले में स्थित है जिस कारण इनका नाम खाटू श्याम पड़ा I मां शक्ति की तपस्या के उपरांत इन्हें अजेय होने का वरदान प्राप्त हुआ था एवं इसके साथ ही तीन बाण भी प्राप्त हुए थे, इसके प्रयोग से वह किसी भी युद्ध को पल भर में समाप्त कर सकते थे साथ ही साथ उन्होंने कमजोर निर्बल ,हारे हुए पक्ष को सहयोग देने का प्रण ले रखा था I महाभारत के युद्ध के समय सभी योद्धा किसी न किसी पक्ष से युद्ध करने कुरुक्षेत्र पहुंच रहे थे युद्ध का समाचार सुनकर बर्बरीक भी कुरुक्षेत्र की ओर जाने लगे, बर्बरीक की प्रतिज्ञा को लेकर श्री कृष्णा इस बात को लेकर चिंतित थे कि कही बर्बरीक कौरवों के पक्ष से युद्ध करने उतरे तो वह पल भर में महाभारत युद्ध को खत्म कर सकते हैं इसी कारण से श्री कृष्ण ने बर्बरीक के समक्ष ब्राह्मण का स्वरुप बनकर उनसे दान का आग्रह किया श्री बर्बरीक महादानी थे उन्होंने अपना शीश दान दे दिया I श्री कृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि वह कलयुग में उनके नाम “ श्याम “ से विख्यात होंगे और उनकी पूजा श्री कृष्ण रूप में ही की जाएगी क्योंकि श्री बर्बरीक खाटू श्याम जी महादानी है इस वजह से एवं हारे हुए के सहारे कहते हैं I जो भक्त हर संसार के हर दरबार से हार जाते है और अपने आप को जब अत्यंत हारा हुआ महसूस करते हैं तो उनकी भक्ति करते हैं श्री खाटू श्याम भक्तों के सभी मनोरथ को सफल करते हैंI वाराणसी स्थित मंदिर पर हर रविवार भक्तों का हुजूम उमड़ा रहता है श्री खाटू श्याम को भेंट स्वरूप तुलसी की माला ,इत्र एवं मोर पंख कि छड़ी चढ़ाया जाता I